दीक्षा जीवन निर्माण एवं रूपांतरण की प्रतिक्रया हैं- साध्वी कुन्थुश्रीजी; दीक्षार्थी वरघोड़ा एवं मंगल भावना समारोह का आयोजन
बालोतरा। युग प्रधान आचार्य महाश्रमणजी की सुशिष्या शासन श्रीसाध्वी कुंथुश्रीजी, साध्वी रातिप्रभाजी, साध्वी गौरवयशाजी एवं ठाणा-15 के सान्निध्य में मुमुक्षु मनीषा, मुमुक्षु तुलसी भगिनी द्वय का मंगल भावना समारोह का आयोजन न्यू तेरापंथ भवन अमृत सभागार में आयोजित हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ साध्वी पावनयशाजी एवं साध्वी शिक्षाप्रभाजी द्वारा महाश्रमण अष्टकम के साथ हुआ। शासन श्रीसाध्वी कुन्थुश्रीजी ने अपने मंगल उद्बोधन में कहा दीक्षा तू व्रत संग्रह व्रतों के कवच धारण करने का नाम दीक्षा है। दीक्षा जीवन निर्माण एवं रूपांतरण की प्रतिक्रया हैं, अध्यात्म प्रयोगो की साध्य भूमि है दीक्षा। दीक्षा का अर्थ है आध्यात्म का रूपांतरण संयम का अवतरण। संक्षेप में आत्म साधन के चरम बिंदु पर पहुचाने वाले सोपान का नाम है दीक्षा, तेरापंथ धर्मसंघ की दीक्षा गुरु के प्रति सर्वस्थना समर्पण की दीक्षा हौ। आप दोनों गुरुइंगित की आराधना करती हुई अध्यात्म पथ पर अग्रसर होती रहे, संयम के सुमन खिलते रहे।
साध्वी रातिप्रभाजी ने दोनों के प्रति मंगल कामना करते हुए कहा संयम उसे कहा जाता है सजग है जगता है। संवर की साधना अनुत्तर साधन है संयम ग्रहण करना लघुवय में दोंनो बहिने संयम की और अग्रसर हो रही है यह दृढ़ मनोबल का परिचय है औऱ इनके माता-पिता भी साधुवाद के पात्र जो अपने तीन-तीन लड़कियों को दान दे रहे। संयम के प्रति जागरूक रहकर हर पल सार्थक, सफल करना औऱ चरित्र की पर्याय को उज्ज्वल करने जाना।
साध्वी गौरवयशाजी ने कहा अध्यात्म भाव का साधन अभिषेक है दीक्षा और इधर उधर फिसलती आज़ादी का ब्रेक है दीक्षा। साध्वी कलाप्रभाजी ने भी मंगल भावना व्यक्त की तथा साध्वी श्रीजी ने समूहस्वर में “संयम पथ से-साधन साकार हो” इस गीत के द्वारा मंगल कामना व्यक्त की।
ओसवाल समाज अध्यक्ष शांतिलाल डागा, जैन श्वेतांबर तेरापंथी सभा अध्यक्ष धनराज ओस्तवाल, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष संदीप ओस्तवाल, ज्ञानशाला प्रभारी राजेश बाफना, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्षा निर्मला संकलेचा, कन्या मंडल संयोजिका साक्षी वेदमेहता, अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल क्षेत्रीय प्रभारी सारिका बागरेचा, कमलादेवी ओस्तवाल, परमार्थिक शिक्षण संस्थान के संरक्षण धनराज भंसाली तथा दीक्षार्थी बहीनों के परिवार से उनकी बहन नीतू, हिना, भाई सुमित, निर्मल आदि ने गीत भाषण मुक्तक आदि से मंगल भावना की एवं हर्ष और उल्लास के साथ उनका वर्धापन किया।
मुमुक्षु बहिन मनीषा ने अपने भाव व्यक्त करते हुए कहा यह संसार भुलावा है सिर्फ यहां कोई न अपना है। यह सकल संसार कोरा सपना है और मोह की जाली में फसकर व्यर्थ है। इसके साथ ही उन्होंने सबकी कृतज्ञता एवं क्षमायाचना की। मुमुक्षु तुलसी ने अपने आप भाव बताते हुए कहा मैं संयम मैं रमण कर और कर्मों की कारा तोड़ू। संयम पथ पर बढ़के में मुझे मेरे परिवार वालों ने सहयोग किया, आज्ञा दी उसके प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित की। कार्यक्रम का कुशलता से संचालन साध्वी मनोज्ञयशाजी ने किया।