शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी का कड़ा रुख: ‘हटा दो अशोक स्तंभ, लगा दो अडानी’ – ओरण भूमि विवाद पर पुलिस प्रशासन झुका, गिरफ्तार ग्रामीण रिहा
बईया गांव में निजी कंपनियों की ओर से ओरण की जमीन पर कार्य प्रारंभ करने के विरोध में प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों को बुधवार दोपहर झिझनियाली पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस मामले को लेकर देर शाम शिव से निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी भी ग्रामीणों के समर्थन में मौके पर पहुंचे. पुलिस की ओर से ग्रामीणों को हिरासत में लिए जाने के बाद से नाराज रविंद्र सिंह भाटी थाने के आगे धरने पर बैठ गए.
विधायक ने जताई नाराजगीः शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने सोशल मीडिया पर एक भावनात्मक पोस्ट के माध्यम से पीड़ा और नाराजगी व्यक्त की. उन्होंने कहा कि वर्षों से हमारे पूर्वजों ने जिन मंदिरों और ओरण में पाए जाने वाले दुर्लभ वृक्षों की रक्षा की और इसके लिए अपने प्राणों का बलिदान भी दिया, आज उसी भूमि पर जबरन पेड़ों की कटाई और निर्माण कार्य प्रारंभ किया जा रहा है. यह न केवल अन्याय है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर पर सीधा हमला है. विधायक भाटी ने प्रशासन के इस रवैये की निंदा करते हुए कहा कि ओरण और पवित्र भूमि की रक्षा के लिए आवाज उठाना हर ग्रामीण का हक है, और उनके साथ इस तरह के दमनकारी कदम अत्यंत निंदनीय हैं.
पिछले कुछ वर्षों में, पश्चिमी राजस्थान में सौर और पवन ऊर्जा जैसी अक्षय ऊर्जा परियोजनाएँ स्थानीय समुदायों और सांस्कृतिक धरोहरों के कारण कठिनाइयों का सामना कर रही हैं। राजस्थान का जैसलमेर जिला, जहां ऐसी परियोजनाओं के लिए बंजर और सरकारी भूमि का उपयोग होता है, वहां के समुदाय अपने पारंपरिक चारागाहों, जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘ओरण’ कहा जाता है, को संरक्षित करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ओरण का धार्मिक, सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व है, और इसे स्थानीय देवी-देवताओं की भूमि माना जाता है, जहाँ से पेड़-पौधों को काटना भी वर्जित है। इस सप्ताह अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड की 600 मेगावाट की सौर ऊर्जा परियोजना जैसलमेर के बईया गांव के ओरण क्षेत्र में स्थानीय ग्रामीणों के विरोध का केंद्र बन गई है।
जैसलमेर के बईया गांव का विरोध और ओरण संरक्षण का संघर्ष
बैया के ग्रामीणों ने पिछले महीने पंचायत स्तर पर प्रस्ताव पास किया कि अडानी ग्रीन एनर्जी को उनकी सरकारी भूमि पर सौर परियोजना स्थापित करने के लिए अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। उनका मानना है कि यह जमीन स्थानीय देवताओं की भूमि है और यहाँ पेड़ों को नुकसान पहुँचाना धार्मिक और सांस्कृतिक नियमों के खिलाफ है। इसके साथ ही, जैव विविधता की दृष्टि से भी यह क्षेत्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस प्रस्ताव को ग्रामीणों ने राज्य और केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों को भी भेजा। इसी सप्ताह, उन्होंने परियोजना के लिए स्विचयार्ड की स्थापना को रोकने का प्रयास किया और दावा किया कि यहां किसी भी प्रकार का निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए।
ओरण का सांस्कृतिक और पारिस्थितिक महत्व
ओरण क्षेत्र राजस्थान में एक पारंपरिक चारागाह होता है, जिसका उपयोग पीढ़ियों से पशुओं के चारे के लिए किया जाता है। इसे न केवल जैव विविधता बल्कि स्थानीय आस्था का प्रतीक माना जाता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ओरण का पारिस्थितिकी तंत्र अत्यंत समृद्ध होता है, जिसमें पक्षियों, कीटों, सरीसृपों, स्तनधारियों और अन्य जंगली प्रजातियों का वास होता है। सौर परियोजनाओं के कारण इस पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा होता है, जो प्राकृतिक संसाधनों की कमी का कारण बन सकता है। कोविड महामारी के दौरान भी, ऐसे चारागाहों ने ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी उत्पादों की कमी को नहीं होने दिया, क्योंकि पशुओं के चारे की उपलब्धता बनी रही।
संघर्ष की उत्पत्ति और राज्य सरकार की भूमिका
स्थानीय लोग पहले अपंजीकृत ओरण क्षेत्रों के संरक्षण को लेकर इतने सजग नहीं थे, लेकिन हाल ही में जब इन क्षेत्रों पर सौर परियोजनाएँ स्थापित की जाने लगीं, तब उन्होंने अपने पारंपरिक अधिकारों को संरक्षित करने के लिए आंदोलन शुरू किया। जैसलमेर में 2016 से यह आंदोलन सक्रिय रूप से शुरू हुआ और 2020 में यह और तेज हो गया। सुमेर सिंह जैसे स्थानीय नेताओं और “टीम ओरण” जैसे संगठनों ने ओरण संरक्षण के लिए कई ज्ञापन और अपीलें प्रस्तुत की हैं। सुमेर सिंह ने बताया कि उन्हें ओरण संरक्षण के लिए एक महीने में कई बार जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय का दौरा करना पड़ता है।
राजस्व अभिलेखों में बंजर भूमि के रूप में वर्गीकरण और सरकारी नीतियाँ
आजादी के बाद से कई अपंजीकृत ओरण क्षेत्रों को राजस्व अभिलेखों में बंजर भूमि के रूप में दर्ज किया गया है। सरकार द्वारा बंजर भूमि के रूप में वर्गीकृत किए जाने के कारण इन चारागाहों पर सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाएँ आसानी से स्थापित की जा रही हैं। फरवरी 2023 में राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी की, जिसमें कहा गया कि सभी पंजीकृत ओरण को सुप्रीम कोर्ट के 2018 के निर्देश के अनुसार ‘वन क्षेत्र’ माना जाएगा। इससे स्थानीय समुदायों में इस आशंका ने जन्म लिया कि वन क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत होने के बाद ओरण भूमि तक उनकी पहुंच सीमित हो जाएगी। हालांकि, पर्यावरणविदों का मानना है कि “वन माना” का टैग स्थानीय समुदायों के प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग करने के अधिकार को नहीं छीनेगा।
राजनैतिक विवाद और विधानसभा में मुद्दा
इस विवाद ने राजनैतिक रूप भी ले लिया है। जैसलमेर के भाजपा विधायक छोटू सिंह ने राज्य विधानसभा में यह मुद्दा उठाया कि सौर और पवन परियोजनाओं के कारण चारागाह क्षेत्र सिमट रहे हैं और इस वजह से चरवाहों को दूसरे स्थानों पर जाना पड़ रहा है। उन्होंने मांग की कि राज्य सरकार को चारागाह क्षेत्रों की पहचान कर उसे संरक्षण में लाना चाहिए। इसी बीच, सौर परियोजनाओं को लेकर ग्रामीणों का विरोध भी बढ़ता जा रहा है।
धार्मिक और सामाजिक मुद्दे
ओरण में लगे पेड़ों को बिश्नोई समुदाय के लोग अत्यंत पवित्र मानते हैं। अडानी ग्रीन एनर्जी द्वारा स्विचयार्ड स्थापित किए जाने की खबर सुनने के बाद, ग्रामीणों ने विरोध शुरू किया और कहा कि इस जमीन पर किसी भी प्रकार की कटाई, निर्माण या परियोजना धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है। शिव विधायक रविंद्र सिंह भाटी ने भी इन ग्रामीणों के समर्थन में धरने पर बैठ गए, जिनके बाद कई गिरफ्तार प्रदर्शनकारियों को रिहा किया गया।
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निष्कर्ष
ओरण भूमि पर अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं के विरोध का मुद्दा राजस्थान में एक महत्वपूर्ण संघर्ष बन गया है। यह न केवल स्थानीय ग्रामीणों के सांस्कृतिक और धार्मिक विश्वासों का सवाल है, बल्कि यह उनकी आजीविका और पारिस्थितिकी तंत्र से भी जुड़ा है। ओरण के संरक्षण की इस लड़ाई ने न केवल ग्रामीणों बल्कि राजनीतिक नेताओं और पर्यावरणविदों को भी एक साथ ला दिया है।