अस्पताल में भर्ती रहे, वेंटिलेटर तक पहुंचे, बाद में स्वस्थ्य हुए लेकिन जीवन से विरक्ति हो गई
जैन समाज में जिम्मेदारियों से निवृत्त होने के बाद स्वेच्छा से मृत्यु का वरण करने की परंपरा ‘संथारा’ में बाड़मेर के जसोल कस्बे ने एक नया अध्याय जोड़ा है। पति-पत्नी एक साथ संथारा पर हैं। 83 वर्ष के पुखराज संकलेचा और 81 वर्षीय पत्नी गुलाबी देवी ने संथारा ग्रहण किया है। दूर-दूर से लोग दंपती के दर्शन करने के लिए जसोल में संकलेचा निवास पर पहुंच रहे हैं। संकलेचा परिवार के भी 150 से ज्यादा सदस्य देशभर से जसोल पहुंच चुके हैं। सुबह से देर रात तक घर में णमोकार मंत्र गूंज रहा है।
सबको पता है कि यहां कुछ दिन बाद परिवार के दो सबसे वरिष्ठ सदस्य संसार छोड़ने वाले हैं, लेकिन माहौल शोक का होने की बजाय उत्सव का है। जैन समाज में मान्यता है कि संथारापूर्वक देह त्यागने पर मनुष्य उत्तम गति को प्राप्त होता है। 10 साल पहले जब गुलाबी देवी की दोहिती ने दीक्षा ली थी, तभी उन्होंने तय कर लिया था कि दीक्षा के 10 वर्ष पूरे होने पर वे संथारा लेंगी। पिछले साल 7 दिसंबर को पुखराज को हार्ट अटैक आया। उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया। चमत्कार ही था कि 83 की उम्र में 16 दिसंबर को स्वस्थ होकर घर लौट आए। परिवार ने ढोल-नगाड़ों से स्वागत किया, पर उनकी जीवन से विरक्ति हो चुकी थी।
10 दिन के बाद 27 दिसंबर को उन्होंने भोजन-दवा छोड़ दी। उन्हें सुमति मुनि के सान्निध्य में संथारा दिलाया गया। उनके पीछे पत्नी गुलाबी देवी ने भी भोजन-पानी छोड़ दिया, लेकिन इसी दौरान तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य महाश्रमण आने वाले थे। इसलिए उन्होंने तीसरे दिन पानी लेना शुरू कर दिया। 6 जनवरी को आचार्य महाश्रमण ने उन्हें संथारा ग्रहण करवाया। जैन इतिहास में इसे पहला अवसर बताया जा रहा है जब पति-पत्नी ने एक साथ संथारा ग्रहण किया है।
आचार्य महाश्रमण ने भी माना-पति-पत्नी का एक साथ संथारा पहली बार
अहिंसा यात्रा से देश भ्रमण कर चुके आचार्य महाश्रमण भी मानते हैं कि उन्होंने ऐसा कभी नहीं सुना जब पति-पत्नी ने एक साथ संथारा लिया हो। पुखराज आठ भाइयों में सबसे बड़े हैं। दो भाइयों की मृत्यु हो चुकी है। उनके पांचों छोटे भाई हीरालाल, दलीचंद, पृथ्वीराज, माणकचंद और तुलसीराम तथा पुत्र कांतिलाल, सुशील कुमार सहित पोते-पोतियां, दोहिते-दोहितियां सभी इस वक्त जसोल में हैं। जसोल में संथारा प्रथा का चलन काफी है। यहां 15 साल में ही 25 संथारे हो चुके हैं।
क्या है संथारा की प्रथा?
आखिर संथारा होता क्या है? भगवान की भक्ति कर रहे दोनों पति-पत्नी का अब क्या होगा? जैन धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब इंसान का अंत निकट हो या फिर उसे लगे कि उसने अपनी जिंदगी भरपूर तरीके से जी ली है तो वो इस संसार से मोह-माया छोड़कर मुक्ति के पथ पर निकल जाता है. यानी धीरे-धीरे मृत्यु की प्रतीक्षा करते हैं. जैन धर्म के कई लोग इस प्रथा का पालन करते हैं. संथारा के पहले चरण में इंसान अपना घर छोड़ भगवान के चरणों में लीन हो जाता है. और धीरे-धीरे अन्न-जल, घर-संसार, परिवार, सारी चीजें छोड़ देता है. और ऐसे ही धीरे-धीरे अपने अंतिम चरण तक पहुंच जाता है और अंत में इस संसार से मुक्ति पा लेता है. मतलब आखिर में उसकी मृत्यु हो जाती है. संथारा को आम भाषा में समाधिमरण भी कहते हैं. और जैन धर्म की लगभग हर प्रार्थना में “मेरा अंतिम मरण समाधि तेरे दर हो” ,
जीना मरना साथ साथ…
जसोल में संकलेचा दंपती ने एक साथ संथारा लेकर देह त्याग करने का फैसला किया है। जैन समाज में ऐसा पहली बार हो रहा है जब पति-पत्नी ने एक साथ संथारा लिया है।
— Balotra News – बालोतरा न्यूज़ (@BalotraNews) January 13, 2023
संथारा के दौरान व्यक्ति अपने सारे बंधन, रिश्ते, नाते, बैर, इन सारी चीजों का त्याग कर देता है. इस दौरान परिवार और समाज के लोग इनकी सेवा करते हैं. उन्हें धर्म की बातें सुनाते हैं, भजन सुनाते हैं और उन्हें संबोधित करते हैं. बाड़मेर के पुखराज संखलेचा को लगभग संथारा लिए 18 दिन हो चुके हैं. और उन्होंने अन्न-जल का भी त्याग कर दिया है. बुजुर्ग दंपति के संथारा लेने की बात जब रिश्तेदारों और जैन धर्मावलंबियों तक पहुंची तो बुजुर्ग दंपति के घर मेले जैसा माहौल है. देश भर में निवास कर रहे रिश्तेदार और जैन धर्म के लोग इन दंपति के दर्शनों के लिए उमड़ रहें है. संथारा को लेकर देश में हो चुका है विवाद संथारा को लेकर देश में एक बहुत बड़ा विवाद हो चुका है. साल 2006 में निखिल सोनी नाम के शख्स ने इसके खिलाफ याचिका दायर की थी. याचिका में कहा गया था कि संथारा की प्रथा आत्महत्या जैसी ही है और इसे आधुनिक समय में मान्यता न दी जाए. जिसके बाद 2015 में राजस्थान कोर्ट ने संथारा की प्रथा को गैर कानूनी बताया और कहा कि अगर जैन धर्म के लोग मानते हैं कि संथारा से मोक्ष मिलता है तो मोक्ष पाने के और भी रास्ते हैं. जिसके बाद इस फैसले का जमकर विरोध हुआ था और पूरा जैन समाज सड़क पर उतर आया था. जिसके बाद हाई कोर्ट में इस फैसले को चुनौती दी गई और हाई कोर्ट ने राजस्थान कोर्ट के इस फैसले को खारिज कर दिया था.