बालोतरा/सिवाना। थार के तपते रेगिस्तान में अब खुशबू महकने लगी है—वो भी लाल चंदन की। राजस्थान के बालोतरा जिले के तहत आने वाला करमावास गांव अब लाल चंदन की खेती के लिए चर्चाओं में है। परंपरागत खेती से अलग हटकर यहां के किसान नवाचारों के सहारे करोड़ों की संभावनाओं की फसल उगा रहे हैं।
करमावास गांव, जो समदड़ी तहसील और सिवाना विधानसभा क्षेत्र का हिस्सा है, अब लाल चंदन के बागानों के लिए पहचान बनाने लगा है। गांव के किसान नेमाराम चौधरी ने अपने 60 बीघा कृषि भूमि पर नवाचार करते हुए करीब 500 लाल चंदन के पौधे लगाए हैं, जिनमें से 250 पौधे आज पूरी तरह से विकसित हो चुके हैं।
मैसूर नहीं, अब बालोतरा भी महकेगा लाल चंदन से
अब तक लाल चंदन का नाम सुनते ही मैसूर की याद आती थी, लेकिन अब बालोतरा भी इस सूची में शामिल हो गया है। नेमाराम चौधरी जैसे किसान यह साबित कर रहे हैं कि अगर नीयत और मेहनत साथ हो तो रेगिस्तान की जमीन भी सोना उगल सकती है।
नेमाराम बताते हैं, “चंदन को सबसे ज्यादा मुनाफा देने वाला पेड़ माना जाता है। इसकी एक बार बागवानी कर किसान कई वर्षों तक अच्छा लाभ कमा सकते हैं।” उन्होंने आगे कहा कि पेड़-पौधों और प्रकृति से उनका बचपन से ही लगाव रहा है। इसी लगाव ने उन्हें पारंपरिक खेती के साथ-साथ कुछ नया करने की प्रेरणा दी।
ऑर्गेनिक फार्मिंग की मिसाल बन रहे नेमाराम
नेमाराम ने अपनी ज़मीन को प्रयोगशाला बना दिया है, जहां वे लाल चंदन के अलावा देसी फल और औषधीय पौधों की भी खेती कर रहे हैं। उनके फार्म में अमरूद, दाड़म (अनार), खजूर, एप्पल बोर, और अन्य कई फलदार पेड़ लगे हैं। 20 बीघा ज़मीन पर उन्होंने फलों की बागवानी की है, वहीं शेष भूमि पर औषधीय पौधे और चंदन के पेड़ हैं।
उनका कहना है कि, “100 में से 70 प्रतिशत पौधे सफल रहे हैं। जितनी उम्मीद थी, उससे कहीं बेहतर नतीजे मिले हैं।”
नवाचारों से बदल रही है खेती की तस्वीर
थार के रेगिस्तान में सदियों से पानी की कमी ने खेती को कठिन बना रखा था, लेकिन अब आधुनिक सिंचाई तकनीकों और कृषि संसाधनों की मदद से यह काम आसान हो गया है। ड्रिप इरिगेशन, ऑर्गेनिक फर्टिलाइज़र, और सोलर पंप जैसी तकनीकों ने किसानों का बोझ कम किया है और उत्पादन बढ़ाया है।
युवाओं को भी मिल रहा प्रेरणा का संबल
नेमाराम जैसे किसानों की सफलता देखकर अब आसपास के गांवों से भी युवा किसान प्रेरित हो रहे हैं। वे खुद फार्म विजिट करने आ रहे हैं, बागवानी का निरीक्षण कर रहे हैं और इसी तरह की खेती अपनाने का मन बना रहे हैं।
एक स्थानीय युवा किसान ने कहा, “हम 30-40 साल से कर्नाटक में थे, अब सोच रहे हैं कि करमावास में ही ऐसा फार्म हाउस खोलें। यहाँ आकर देखा कि सही मायनों में खेती अब एक बिज़नेस मॉडल बन चुकी है।”
परंपरागत सोच में बदलाव ज़रूरी
कई किसान अभी भी परंपरागत खेती के दायरे में ही रहना चाहते हैं और नए प्रयोगों से हिचकते हैं। लेकिन नेमाराम चौधरी जैसे किसान यह दिखा रहे हैं कि यदि हम थोड़ा जोखिम उठाएं और आधुनिक तकनीकों का सहारा लें, तो खेती भी करोड़ों की कमाई का जरिया बन सकती है।
कभी सामाजिक बदनामी का शिकार रहा करमावास, अब बन रहा है नवाचार और सफलता की मिसाल
कभी करमावास गांव एक ऐसे विषय से जुड़ा था, जिससे समाज में बदनामी मिलती थी। वर्षों पहले यह गांव वेश्यावृत्ति जैसी सामाजिक बुराई के कारण बदनाम था, लेकिन समय के साथ परिस्थितियां बदलीं, लोगों की सोच बदली और अब इसी गांव की पहचान हरित क्रांति और कृषि नवाचारों से बनने लगी है।
नेमाराम चौधरी जैसे प्रगतिशील किसानों ने न केवल अपने जीवन को बदला, बल्कि पूरे गांव को एक नई दिशा दी। आज करमावास की पहचान लाल चंदन की खुशबू, ऑर्गेनिक फार्मिंग, और आत्मनिर्भर ग्रामीण विकास के रूप में हो रही है।
गांव के बुज़ुर्ग कहते हैं, “जहाँ पहले लोग नाम सुनकर नजरें फेर लेते थे, आज वहीं लोग प्रेरणा लेने आ रहे हैं। ये बदलाव हमें गर्व देता है।”
करमावास गांव की यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि राजस्थान के बदलते कृषि परिदृश्य की तस्वीर है। लाल चंदन की इस खुशबू ने यह साबित कर दिया है कि रेगिस्तान की मिट्टी में भी खुशहाली की फसल उग सकती है—जरूरत है तो बस सोच बदलने और नवाचार को अपनाने की।