भारत अब चीन पर अपनी निर्भरता घटाने के लिए दुर्लभ पृथ्वी (Rare Earth) खनिजों की खुदाई को लेकर बड़ा कदम उठा रहा है। राजस्थान के बालोतरा और जालौर क्षेत्रों में दुर्लभ पृथ्वी धातुओं के भंडार की पुष्टि के बाद अब यहां की जमीन की नीलामी की तैयारी की जा रही है। इन इलाकों में नियोडियम (Neodymium) और डिस्प्रोसियम (Dysprosium) जैसे दुर्लभ खनिजों के होने के संकेत मिले हैं।

खोज और महत्व
- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और एटॉमिक एनर्जी विभाग राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों से सक्रिय खोज कर रहे हैं। शुरुआती सफलताओं के आधार पर सरकारी एजेंसियां जल्द ही नीलामी की प्रक्रिया शुरू करेंगी।
- अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे (USGS) के मुताबिक, भारत दुर्लभ पृथ्वी भंडार के मामले में दुनियाभर में तीसरे स्थान पर है।
- राजस्थान के बालोतरा और जालौर क्षेत्र बास्तनासाइट (Bastnasite), ब्रिथोलाइट (Britholite) और जेनोटाइम (Xenotime) जैसे स्रोत खनिजों के लिए जाने जाते हैं, जिनसे सेरियम, लैंथेनम, नियोडियम, प्रसीओडियम, गैडोलिनियम, डिस्प्रोसियम आदि निकाले जाते हैं।
राजस्थान के बालोतरा क्षेत्र में मिला दुर्लभ मृदा खनिज (Rare Earth Minerals) का भंडार भारत के लिए तकनीकी और औद्योगिक दृष्टि से ऐतिहासिक उपलब्धि है। यहाँ विस्तार से जानकारी प्रस्तुत है:
कहाँ और कितना भंडार
- बालोतरा के सिवाना तहसील स्थित भाटी खेड़ा में भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और परमाणु खनिज निदेशालय (AMD) ने गहन सर्वे के बाद दुर्लभ मृदा तत्वों की 1,11,845 टन (Rare Earth Oxide – REO) का विशाल भंडार खोजा है।
- यह भारत का पहला हार्ड रॉक दुर्लभ खनिज ब्लॉक है, जिसकी पुष्टि अब आधिकारिक रूप से हुई है।
- यह भंडार केवल बालोतरा या बाड़मेर ही नहीं, बल्कि राजस्थान के अन्य जिलों—बीकानेर, अलवर, बांसवाड़ा, उदयपुर, सीकर आदि—में भी संभावित है, जहाँ 17 के 17 दुर्लभ मृदा तत्वों के होने के संकेत मिले हैं।

किस प्रकार के तत्व मौजूद हैं
- कुल 17 दुर्लभ मृदा तत्त्व (Rare Earth Elements, REE): इसमें 15 लैंथेनाइड्स (Lanthanides) के साथ स्कैंडियम (Scandium) और यिट्रियम (Yttrium) शामिल होते हैं।
- इनके अयस्कों में प्रमुख रूप से सेरियम, लैन्थेनम, नियोडिमियम, प्रसीओडिमियम, गैडोलिनियम, डिस्प्रोसियम आदि पाए जाते हैं।
- इन धातुओं की खासियत इनकी चुंबकीय, ऑप्टिकल और इलेक्ट्रॉनिक प्रॉपर्टीज में है, जो अत्याधुनिक तकनीकी उपकरणों के लिए अनिवार्य हैं।
उपयोगिता और रणनीतिक महत्व
- इन खनिजों का इलेक्ट्रॉनिक्स, अक्षय ऊर्जा, रक्षा उपकरण, बैटरियां, सैटेलाइट, मोबाइल, ऑटोमोबाइल और ग्रीन एनर्जी में व्यापक उपयोग है।
- भारत अब तक लगभग 80% दुर्लभ मृदा धातुएँ चीन से आयात करता है। राजस्थान की यह खोज चीन की ‘मोनोपॉली’ को चुनौती दे सकती है और भारत को आत्मनिर्भर बनाने की तरफ बड़ा कदम है।
सरकार और औद्योगिक कदम
- केंद्र सरकार ने इन भंडारों की खोज, खनन नीलामी (auction), और प्रौद्योगिकी विकास के लिए विभिन्न मिशन शुरू किए हैं, जैसे राष्ट्रीय महत्वपूर्ण खनिज मिशन, PLI स्कीम।
- एमबीएम विश्वविद्यालय, जोधपुर में रेयर अर्थ मेटल्स एक्सीलेंस सेंटर खोलने का प्रस्ताव भेजा गया है, जिससे स्थानीय स्तर पर रिसर्च, प्रशिक्षण और तकनीकी विकास को बढ़ावा मिलेगा।
- खनन, प्रोसेसिंग तथा उत्पादन के लिए नीलामी प्रक्रिया शुरू होने वाली है और अनुमानित प्रारंभिक मूल्य 10 करोड़ रुपये के आसपास है।
आगे की चुनौतियां
- इन धातुओं का निष्कर्षण (Extraction) और शुद्धिकरण तकनीकी रूप से कठिन और खर्चीला है।
- भारत को सस्ती एवं व्यावहारिक तकनीक विकसित करनी होगी, जिससे कुल उत्पादन, प्रोसेसिंग और बाज़ार तक पहुंच बनाई जा सके।
प्रमुख खोजस्थल (बालोतरा क्षेत्र)
- सेंजी की बेरी मेली, इंद्राणा सिवाना, सुकलेश्वर मंदिर क्षेत्र, निमाड़े की पहाड़ी (दंताला), कुंडल-धीरा, मवड़ी, सिलोर दंताला, कालूड़ी, टापरा, गुड़ानाल, बाछड़ाऊ (धोरीमन्ना), गूंगरोट, रेलों की ढाणी, तेलवाड़ा।
सरकार की पहल
- केंद्र सरकार ने हाल ही में क्रिटिकल मिनरल्स (National Critical Mineral Mission) अभियान शुरू किया है ताकि महत्वपूर्ण खनिजों की खोज, खनन और प्रोसेसिंग को बढ़ाया जा सके।
- साथ ही, देश में रेयर अर्थ मैग्नेट्स के घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए 1,000 करोड़ रुपए का प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम लॉन्च की गई है।
- ये मैग्नेट्स आधुनिक दुनिया के कई उपकरणों—जैसे घरेलू इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, लड़ाकू विमान—में उपयोग किए जाते हैं।
चुनौतियाँ
- दुर्लभ पृथ्वी धातुओं को ‘रेयर’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि इन्हें अन्य खनिजों के साथ मिश्रित अवस्था में पाया जाता है और इनका निष्कर्षण व शुद्धिकरण अत्यंत जटिल होता है।
- भारतीय खनिजों में इन धातुओं की सांद्रता अपेक्षाकृत कम होती है, जो निष्कर्षण में चुनौती पैदा करती है।
- हालांकि, राजस्थान की कठोर चट्टानों में मौजूद भंडार इस समस्या को हल करने की दिशा में मददगार हो सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत की दुर्लभ पृथ्वी धातुओं में आत्मनिर्भरता की दिशा में यह एक ऐतिहासिक कदम है। इससे देश के तकनीकी और औद्योगिक क्षेत्र को मजबूती मिलेगी, वहीं चीन पर निर्भरता भी घटेगी। नीलामी प्रक्रिया के सफल होने के बाद रेयर अर्थ सेक्टर में बड़े निवेश और रोजगार की संभावनाएं भी खुलेंगी