विरासत:तिलवाड़ा पशु मेला 28 से होगा शुरू, कोरोना के दो साल बाद मेले में आएंगे लाखों पशु, घुड़दौड़ समेत कई प्रतियोगिताएं होगी आयोजित

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विरासत:तिलवाड़ा पशु मेला 28 से होगा शुरू, कोरोना के दो साल बाद मेले में आएंगे लाखों पशु, घुड़दौड़ समेत कई प्रतियोगिताएं होगी आयोजित

 

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700 साल पहले लूणी नदी के तट पर संत समागम के साथ शुरू हुआ था रावल मल्लीनाथ पशु मेला
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तिलवाड़ा में लूणी नदी की तट पर करीब 700 साल पहले रावल मल्लीनाथजी के संत समागम के साथ शुरु हुआ श्री रावल मल्लीनाथ पशु मेले का 28 मार्च को विधिवत् शुभारंभ होगा। इस दिन जिला कलक्टर लोकबंधु मेला मैदान में ध्वजारोहण करेंगे। साथ ही साधुसंतों के सानिध्य रावल किशनसिंह के नेतृत्व में रावल मल्लीनाथ मंदिर शिखर पर ध्वजारोहण किया जाएगा।

मेले में हर दिन आयोजित होने वाली प्रतियाेगिताओं में पशुपालक बढ़चढ़कर भाग लेंगे। इस बार केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी के रुचि लेने पर राज्य केंद्र सरकार की ओर से मेला आयोजन को लेकर विशेष निर्देश जारी किए गए हैं। मेले में किसानों पशुपालकों को किसानीखेती में नवाचार के साथ ही योजनाओं से लाभांवित मेला संस्कृति पशुपालन को बचाए रखने को लेकर अहम पहल कर रही है।

मेला आयोजन को लेकर एक सप्ताह पूर्व जिला कलक्टर ने बैठक लेकर मेला मैदान में छाया, पानी, सुरक्षा व्यवस्था, बैंकिंग व्यवस्था, साफसफाई, मेला मार्ग पर साइन बोर्ड लगाने के साथ ही सांस्कृतिक आयोजनों को लेकर दिशानिर्देश दिए थे। मेले की शुरुआत 28 मार्च से होगी, लेकिन इससे पहले ही पशुपालकों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया है। मारवाड़ी नस्ल के प्रसिद्ध घोड़ों पर देश के पंजाब, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, दिल्ली सहित विभिन्न राज्यों से अश्वपालक पशुओं की खरीदफरोख्त के लिए यहां पहुंचते हैं।

कोविड के चलते दो साल बाद मेला शुरू होने पर रावल मल्लीनाथ पशु मेला इस बार अपने चरम पर होगा। उल्लेखनीय है कि रावल मल्लीनाथ एक वीर शासक योद्धा होने के साथ ही संत पुरुष थे। वहीं इनकी पत्नी राणी रुपादे भी भक्तिभाव में लीन थे। लूणी नदी के किनारे भरड़कोट के समीप रावल मल्लीनाथ राणी रुपादे का पाळिया बना हुआ है, जो जनजन की आस्था का केंद्र बना हुआ है। इस पर विभिन्न क्षेत्रों से लोग दर्शन पूजन मनोकामनाएं करने के लिए यहां पहुंचते हैं।

मेले में यूपी,एमपी समेत कई राज्यों से पशुपालकों के आने का सिलसिला शुरू, इस बार भावों में तेजी की उम्मीद

तिलवाड़ा पशु मेला मारवाड़ की संस्कृति, सभ्यता भाईचारा का प्रतीक है। करीब 700 साल से चले रहे इस मेले में मारवाड़, मेवाड़ सहित अन्य प्रांतों से पशुपालक पहुंचते हैंं। इसमें अपनेअपने क्षेत्र में महत्ता रखने वाले पशुओं की खरीदफराेख्त के साथ विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित होती है। करीब एक माह तक पशुपालक यहां ठहरकर मेले का लुत्फ उठाते हैं।

एक ही जगह पर अलगअलग राज्यों से पहुंचने वाले लाेगों पर आपसी सद्भाव भाईचारा भी बना रहता है। देश विख्यात तिलवाड़ा पशु मेले में 3 अप्रेल काे भारत सरकार के चार केंद्रीय मंत्री भाग लेंगे। इसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्रसिंह तोमर, पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला, जल संसाधन मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत कृषि राज्य मंत्री कैलाश चौधरी शिरकत करेंगे।

यहां पर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की ओर से देश की बड़ी कृषि और पशुपालन की प्रदर्शनी लगेगी। इसे लेकर बुधवार को काजरी की टीम ने मेला मैदान का जायजा लेने के साथ ही एसडीएम नरेश साेनी से आयोजन को लेकर चर्चा की। मेले में श्रेष्ठ पशुपालकों किसानों को भारत सरकार की ओर से भी पुरस्कार वितरित किए जाएंगे।

13 वीं शताब्दी में रावल मल्लीनाथ ने मारवाड़ के संतों की मौजूदगी में की थी कुंडा पंथ की स्थापना और इसके बाद शुरू हुए तिलवाड़ा पशु मेले को मिली ख्याति

रावल मल्लीनाथ वीर योद्धा शासक होने के साथ ही संत पुरुष थे। बताया जाता है कि उन्होंने ईसवी संवत् 1376 में मारवाड़ के सारे संतों को सम्मिलित करके बड़ा हरि संकीर्तन (संत समागम) करवाया और कुंडा पंथ की स्थापना की। संत समागम में भाग लेने के लिए मारवाड़, मेवाड़, कच्छ वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित अमरकोटथरपारकर क्षेत्र से संत, रावल शासक शामिल हुए थे।

करीब 700 साल पूर्व लोगों के आवागमन के साधन ऊंटघोड़े, बैल आदि हुआ करते थे, इस पर समागम में भाग लेने के लिए साधुसंतों राजामहाराजाओं के साथ हजारों की संख्या में पशुधन यहां पहुंचे। जिससे एकदूसरे क्षेत्र के पशुओं की महत्ता, उनकी विशेषता के साथ उपयोगिता के आधार पर पशुओं की खरीदफरोख्त शुरु हुई।

रावल मल्लीनाथ तिलवाड़ा पशु मेला भले ही पशुपालन विभाग के निर्देशन में हो रहा हो, लेकिन मेले में पशुपालकों को सरकारी स्तर पर किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं दिया जा रहा है। चैत्र माह की वदी ग्यारस से चैत्र सुदी ग्यारस तक एक महीने तक मेला रहता है। इसमें दूरदराज से पहुंचने वाले पशुपालकों को प्रोत्साहन की दरकार महसूस की जा रही है।

मेला हमारी संस्कृति सद्भाव की मिसाल है

यह मेला हमारी संस्कृति, सद्भाव सभ्यता को बनाए हुए हैं। हमारी पुरातन संस्कृति को नहीं भूले, ऐसे में इस मेला आयोजन को लगातार रखना चाहिए। 13वीं शताब्दी से चला रहा यह मेला आपसी सद्भाव की मिसाल है। सरकार से भी दरकार है कि वे पशुपालन एग्रीकल्चर में नवाचार काे देखते हुए पशुपालकों किसानों काे स्पेशल बजट स्वीकृत करवाएं, ताकि ये किसान पशुपालक हमारी पुरातन संस्कृति को बचाए रख सकें।

 

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