विजयादशमी पर हुआ रावण दहन, सूर्यास्त के बाद पहली बार आयोजन से नाराज हुए विधायक

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बालोतरा। विजयदशमी के मौके पर गुरुवार शाम आयोजित रावण दहन कार्यक्रम में इस बार परंपरा और मर्यादा की अनदेखी के चलते माहौल बिगड़ गया। शहरवासी, जनप्रतिनिधि और अधिकारी सभी मौजूद थे, लेकिन जिला कलेक्टर के समय पर नहीं पहुँचने से रावण दहन कार्यक्रम में भारी देरी हुई।

विजयादशमी के पावन पर्व पर नगर में रावण दहन का भव्य आयोजन किया गया। इस बार विशेष रूप से रावण दहन सूर्यास्त के बाद किया गया, जोकि पहली बार हुआ। कार्यक्रम में शहरवासियों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और रावण दहन के साथ आतिश बाजी का आनंद उठाया। सूर्यास्त के बाद देर से रावण दहन करने को लेकर विधायक ने नाराजगी भी जताई। उनका कहना था कि परंपरा अनुसार रावण दहन दिन के समय होना चाहिए, किंतु इस बार समय पर आयोजन नहीं होने से धार्मिक परंपरा प्रभावित हुई है। इसके बावजूद आतिशबाजी और आयोजन की भव्यता को देखने के लिए नगरवासी बड़ी संख्या में मौजूद रहे। पूरा वातावरण जय श्रीराम के जयकारों से गूंज उठा और लोगों ने विजयादशमी पर्व को उत्साह व उमंग के साथ मनाया। अब देखने वाली बात यह है कि इस चूक की जिम्मेदारी किसके सिर डाली जाएगी और आखिरकार किसके ऊपर गिरेगी गाज।

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बालोतरा में रावण दहन पर बवाल – कलेक्टर की देरी ने परंपरा और जनभावनाओं को जलाया : विधायक बने उपेक्षित, अफसरशाही रही हावी, अफसरशाही की जीत, धर्म और लोकतंत्र दोनों की हार !

निर्धारित मूहूर्त 6:24 बजे का था, मगर कलेक्टर की अनुपस्थिति में पुतलों का दहन 6:45 बजे तक टल गया। इस दौरान विधायक अरुण चौधरी भी मौजूद रहे, लेकिन रावण दहन ठेके के कार्मिक रिमोट लेकर मौके से गायब हो गए।

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इस रवैये को लेकर भाजपा नेताओं और आमजन ने विधायक चौधरी पर नाराजगी जताई। भीड़ में असंतोष बढ़ता गया, लोग कहने लगे कि धार्मिक कार्यक्रम में नौकरशाही का दबदबा गलत है।

भाजपा नेताओं ने ठेके के कार्मिको से रिमोट को छीनकर ले आए और विधायक को रिमोर्ट दिया गया और यह विवाद करीब 20 मिनट तक चला। आखिरकार विधायक चौधरी ने बटन दबाया, लेकिन तकनीकी गड़बड़ी के चलते कुंभकरण का पुतला नहीं जला। सीधे रावण को जलाया गया।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले कुंभकरण, फिर मेघनाद, और अंत में रावण दहन होता है। यह क्रम रामायण युद्ध के घटनाक्रम का प्रतीक है। परंपरा तोड़े जाने से लोगों में गहरी निराशा दिखी और धार्मिक भावनाएँ आहत हुईं।

लोगों का कहना था कि एक सरकारी अधिकारी (जिला कलेक्टर) के इंतजार में पूरा कार्यक्रम रोका गया, जबकि जनता के चुने हुए प्रतिनिधि विधायक की अनदेखी और अपमान किया गया। पूरे घटनाक्रम ने यह संदेश दिया कि लोकतंत्र में भी ब्यूरोक्रेसी हावी है और जनप्रतिनिधि उपेक्षित हैं।

कार्यक्रम के बाद भी शहरभर में इस घटना को लेकर चर्चा रही और लोगों ने इसे विधायक के मान-सम्मान और धार्मिक परंपराओं की खुली अवहेलना बताया।

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