📍 लाठी, जैसलमेर |
राजस्थान के रेगिस्तानी भूभाग में वन्यजीवों की रक्षा को जीवन का धर्म मानने वाले राधेश्याम पेमाणी विश्नोई का दुखद निधन हो गया। शुक्रवार रात को राष्ट्रीय राजमार्ग पर लाठी कस्बे के पास एक दर्दनाक सड़क हादसे में उनकी जान चली गई। वे उस समय हिरण शिकार की सूचना पर मौके पर जा रहे थे।
🛑 हादसे में 4 की मौत, वन्यजीव संरक्षण को गहरा झटका
घटना लाठी गैस एजेंसी के पास की है, जहाँ एक बोलेरो कैंपर और ट्रक की आमने-सामने की टक्कर हो गई। इस हादसे में मौके पर ही चार लोगों की मौत हो गई:
- राधेश्याम पेमाणी विश्नोई – वन्यजीव रक्षक, गोडावण संरक्षण में सक्रिय
- श्याम प्रसाद – वन्यजीव प्रेमी
- कंवराज सिंह – वन्यजीव प्रेमी
- सुरेंद्र चौधरी – वन विभाग कर्मचारी
सूचना मिलते ही लाठी थाना पुलिस मौके पर पहुँची और शवों को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। पूरे क्षेत्र में इस घटना के बाद शोक की लहर है।

🦅 गोडावण के रखवाले थे राधेश्याम पेमाणी
राधेश्याम पेमाणी का नाम राजस्थान के गोडावण संरक्षण में अग्रणी कार्यकर्ताओं में गिना जाता है। उन्होंने 2018 से अब तक गोडावण और अन्य रेगिस्तानी जीवों के लिए:
- 50+ जल संरचनाएं बनवाईं
- घायल जानवरों का इलाज किया
- गिद्ध, चिंकारा, नीलगाय, लोमड़ी जैसे जीवों को पुनर्जीवित किया
- शिकारियों के खिलाफ कई बार पुलिस और वन विभाग को सहयोग दिया
उनका सपना था — “रेगिस्तान की हर साँस लेने वाली आत्मा सुरक्षित रहे।”
🌾 प्राकृतिक प्रेम से जन्मा रक्षक
बिश्नोई समुदाय में जन्मे राधेश्याम बचपन से ही वन्य जीवों के लिए संवेदनशील थे। जैसलमेर के ग्रामीण क्षेत्र में रहते हुए उन्होंने आधुनिक प्रशिक्षण लेकर स्वयं को “वन्यजीव रक्षक” के रूप में विकसित किया। उन्होंने न केवल खुद काम किया, बल्कि कई युवाओं को भी इस कार्य से जोड़ा।
🕯️ अलविदा राधेश्याम — एक युग का अंत
राधेश्याम की मौत सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, वन्यजीव संरक्षण आंदोलन के एक स्तंभ की क्षति है। उनके जाने से गोडावण के आकाश में एक सन्नाटा गूंज रहा है।
राजस्थान, विशेषकर जैसलमेर, जोधपुर और पोखरण क्षेत्रों में लोग उन्हें “गोडावण मैन” के नाम से जानते थे। सोशल मीडिया पर हजारों लोगों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी,
📸 “प्रकृति ने अपना सच्चा सिपाही खो दिया है”
राधेश्याम पेमाणी विश्नोई राजस्थान के जैसलमेर जिले के धोलिया गांव के निवासी थे, जो अपने जीवन को वन्यजीव संरक्षण और विशेष रूप से संकटग्रस्त पक्षी गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड) के संरक्षण के लिए समर्पित कर चुके थे। उनकी प्रेरक यात्रा और योगदान ने उन्हें राजस्थान ही नहीं, बल्कि पूरे भारत में पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्तित्व बना दिया।
🌿 प्रारंभिक जीवन और प्रेरणा
राधेश्याम पेमाणी का जन्म 1997 में राजस्थान के पोखरण क्षेत्र में हुआ था। बिश्नोई समुदाय से होने के कारण, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रसिद्ध है, उन्होंने बचपन से ही वन्यजीवों के प्रति गहरा लगाव विकसित किया। रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों में जीवों की कठिनाइयों को देखकर उन्होंने वन्यजीवों की सहायता का संकल्प लिया।
🐾 वन्यजीव संरक्षण में योगदान
1. गोडावण संरक्षण
गोडावण, जिसे राजस्थान का राज्य पक्षी घोषित किया गया है, विलुप्ति की कगार पर है। राधेश्याम ने इस पक्षी के संरक्षण के लिए विशेष प्रयास किए। उन्होंने पोकरण क्षेत्र में गोडावण के आवासों की निगरानी की, उनके अंडों की सुरक्षा सुनिश्चित की, और अवैध शिकार के खिलाफ सक्रिय रूप से कार्य किया। उनकी पहल से गोडावण की संख्या में सुधार देखा गया है।
2. जल संरक्षण
रेगिस्तान में जल की कमी वन्यजीवों के लिए एक बड़ी चुनौती है। राधेश्याम ने 2018 में जल संरक्षण की पहल शुरू की, जिसमें उन्होंने 50 से अधिक जलाशय बनाए। इन जलाशयों के माध्यम से उन्होंने गोडावण, चिंकारा, नीलगाय और अन्य वन्यजीवों को जीवनदान दिया।
3. वन्यजीवों का बचाव और पुनर्वास
राधेश्याम ने घायल वन्यजीवों की सहायता के लिए जोधपुर के फॉरेस्ट रेस्क्यू सेंटर में प्रशिक्षण प्राप्त किया। उन्होंने चिंकारा, नीलगाय, गिद्ध और अन्य पक्षियों का बचाव और पुनर्वास किया। उनकी इस सेवा से सैकड़ों वन्यजीवों की जान बचाई गई।
🏆 सम्मान और पहचान
राधेश्याम के योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली। उन्हें “युवा प्रकृतिवादी पुरस्कार 2021” से सम्मानित किया गया। उनकी कार्यशैली और समर्पण ने उन्हें वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत बना दिया।
🕯️ दुखद अंत
मई 2025 में, हिरण शिकार की सूचना पर घटनास्थल पर पहुचने के दौरान जैसलमेर के लाठी कस्बें के पास, राधेश्याम पेमाणी और उनके तीन साथियों की एक सड़क दुर्घटना में दुखद मृत्यु हो गई। उनकी इस बलिदान ने पूरे राजस्थान को शोक में डुबो दिया और वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में एक अपूरणीय क्षति हुई।
🌟 प्रेरणा का स्रोत
राधेश्याम पेमाणी विश्नोई का जीवन और कार्य हमें यह सिखाते हैं कि समर्पण और दृढ़ संकल्प से कोई भी लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है। उनकी कहानी आज के युवाओं के लिए एक प्रेरणा है कि कैसे एक व्यक्ति भी पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
बिश्नोई के संरक्षण प्रयास बहुआयामी थे। उन्होंने जीआईबी आवासों की गश्त, उच्च-तनाव वाली बिजली लाइनों और रेलवे पटरियों जैसे खतरों की निगरानी और पारिस्थितिकी, ग्रामीण विकास और स्थिरता (ईआरडीएस) फाउंडेशन के मार्गदर्शन में स्थानीय स्वयंसेवकों के एक नेटवर्क का समन्वय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पक्षियों की टक्कर को रोकने के लिए भूमिगत बिजली लाइनों के लिए अभियान चलाने तक उनकी वकालत विस्तारित हुई, जो जीआईबी मृत्यु का एक प्रमुख कारण है।
थार रेगिस्तान की कठोर परिस्थितियों के जवाब में, बिश्नोई ने वन्यजीवों के लिए पीने का पानी उपलब्ध कराने के लिए 100 से अधिक जलाशयों का निर्माण भी शुरू किया। पानी के टैंकरों का उपयोग करके भरे गए इन जलाशयों ने निर्जलीकरण के कारण वन्यजीवों की मृत्यु दर को कम करने में मदद की। उन्हें एक उत्साही फोटोग्राफर के रूप में भी जाना जाता था, जो अपने लेंस के माध्यम से क्षेत्र की जैव विविधता का दस्तावेजीकरण करते थे और खतरों और संरक्षण प्रयासों की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जागरूकता फैलाते थे।
बिश्नोई ने हिमालयन ग्रिफ़ॉन गिद्धों और सिनेरियस गिद्धों सहित कई जानवरों और पक्षियों को व्यक्तिगत रूप से बचाया और उनका पुनर्वास किया। उन्होंने शिकार विरोधी पहल में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, कई एफआईआर दर्ज करने के अलावा, शिकार गिरोहों की गिरफ्तारी के लिए सूचना प्रदान की। उनके प्रयासों ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पहचान भी दिलाई, जिसमें 2021 में यंग नेचुरलिस्ट श्रेणी के तहत सैंक्चुअरी नेचर फाउंडेशन का सैंक्चुअरी वाइल्डलाइफ सर्विस अवार्ड भी शामिल है।
वन्यजीव जीवविज्ञानी और बिश्नोई के संरक्षक सुमित डूकिया ने इस नुकसान पर गहरा दुख व्यक्त किया। “कल रात, हमने एक घातक सड़क दुर्घटना में जीआईबी सामुदायिक संरक्षण कार्यक्रम के अपने ध्वजवाहक को खो दिया। आखिरी सांस तक भी, वह एक शिकार विरोधी गश्ती दल के साथ थे। राधे बिश्नोई, तुम बहुत जल्दी चले गए मेरे बेटे। एक सच्चे शहीद,” उन्होंने कहा।

राज्य भर से तथा बाहर से भी शोक संदेश आए हैं। मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने कहा, “जैसलमेर के राधेश्याम पेमाणी, श्यामलाल बिश्नोई, कंवर सिंह तथा वन विभाग के कर्मचारी सुरेन्द्र चौधरी की जैसलमेर के लाठी क्षेत्र में हुई भीषण सड़क दुर्घटना में हुई मृत्यु के बारे में सुनकर अत्यंत पीड़ा हुई है, जो पर्यावरण तथा वन्य जीवन के संरक्षण के लिए समर्पित थे।”