बालोतरा:राजस्थान की मिट्टी में संस्कृति की खुशबू रची-बसी है। यहां की परंपराएं न केवल सामाजिक रिश्तों को मज़बूती देती हैं, बल्कि प्रकृति से जुड़ने का अवसर भी देती हैं। ऐसी ही एक विलक्षण परंपरा है ‘समंदर हिलोरा’, जो आज भी मारवाड़ अंचल में पूरे उत्साह के साथ निभाई जाती है।

क्या है ‘समंदर हिलोरा’?
‘समंदर हिलोरा’ परंपरा विशेषकर पश्चिमी राजस्थान में मारवाड़ क्षेत्र में निभाई जाती है।
यह परंपरा उस समय शुरू होती है जब विवाहिता महिलाएं होली के पर्व के बाद और श्रावण मास की शुरुआत से पहले अपने ससुराल के तालाब पर पहुंचती हैं। वे वहां जाकर तालाब की मिट्टी निकालकर तालाब की पाल (किनारा/ऊपरी भाग) पर डालती हैं। गर्मियों में सूख चुके तालाब की सफाई भी करती हैं और अच्छी बारिश के लिए इंद्र देव से प्रार्थना करती हैं कि श्रावण में तालाब और जलस्रोत बारिश के पानी से भर सके ताकि वे समंदर हिलोरा की रस्म निभा सकें।
इस कार्य में कुछ महिलाएं 360 कुंडा (तगारी) तक मिट्टी ढोकर पाल पर डालती हैं। ये प्रक्रिया 4 से 5 दिनों तक चलती है।

भाई-बहन के प्रेम का त्योहार
जैसे ही मानसून जून के अंत में मारवाड़ पहुंचता है और तालाब भरने लगते हैं, तो श्रावणी तीज, देव झूलनी एकादशी, या कृष्ण जन्माष्टमी के विशेष दिन पर यह रस्म निभाई जाती है।
इस दिन बहन अपने भाई को ससुराल बुलाती है। एक विशेष मटका (माटा) सजाया जाता है जिसमें पतासा, खाजा, घुघरी और मातर से भरा जाता है। फिर पूरा परिवार तालाब के उसी किनारे पहुंचता है, जहां से मिट्टी निकाली गई थी।

वहां भगवान की पूजा कर भोग अर्पित किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है। इसके बाद भाई और बहन तालाब में उतरते हैं और मटके को तालाब के जल में हिलाते हैं — इसी को ‘समंदर हिलोरा’ कहा जाता है। मटके में भरे पानी को पहले भाई अपनी बहन को पिलाता है, फिर बहन भाई को पिलाती है। बाद में उस पानी से भरा मटका घर लाया जाता है।

प्रकृति से प्रेम और संरक्षण की मिसाल
यह परंपरा सिर्फ भाई-बहन के रिश्ते तक सीमित नहीं है। यह प्रकृति और जल संरक्षण से भी जुड़ी हुई है। पुराने समय में जब ग्रामीण इलाकों में पानी का एकमात्र स्रोत तालाब ही हुआ करते थे, तब इस परंपरा के ज़रिए तालाब की सफाई, पाल की मरम्मत, और जल स्रोतों का महत्व समझाया जाता था।

समंदर हिलोरा का आयोजन
रविवार को बालोतरा क्षेत्र के किटनोद गांव की नाड़ी और लूणी नदी किनारे तालाबों पर ‘समंदर हिलोरा’ परंपरा का भव्य आयोजन हुआ। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सजधज कर पहुंचीं। 21 महिलाओं ने भाग लिया, जिनमें 15 कलबी समाज और 6 माली समाज की बहनें शामिल रहीं। सजावटी मटके लोगों के आकर्षण का केंद्र बने, वहीं महिलाओं ने राजस्थानी गीतों के साथ उत्सव को जीवंत कर दिया।

समंदर हिलोरा — एक परंपरा, एक भावना, एक संस्कृति
समंदर हिलोरा न केवल सांस्कृतिक धरोहर है, बल्कि यह जल संरक्षण, परिवारिक बंधन, और समुदाय की एकजुटता का प्रतीक भी है। यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों को यह सिखाती है कि रिश्तों की डोर और प्रकृति से नाता — दोनों को संजोना ज़रूरी है।