निजी विद्यालय द्वारा अपने निजी स्तर पर बनाया जा रहा है सेलेब्स, हर स्कूल बनावा रही अपनी-अपनी किताबे, निजी प्रकाशकों से तालमेल बिठा कर भिन्न भिन्न पाठ्यक्रमों छपवा कर अनुचित और मनमाने मूल्यों पर बेचा जा रहा है किताबों को, शिक्षा विभाग की मॉनिटरिंग नहीं होने धड़ल्ले से लूटा जा अभिभावकों को…
स्कूल खुलते ही शिक्षा माफियाओं ने बच्चो के परिजनों की जेबों पर डाका डालना शुरू कर दिया है। निजी स्कूलों द्वारा उनके मनचाहे प्रकाशकों की कापी किताबें लेने के लिए परिजनों पर दबाव बनाया जा रहा है। इनमें शहर के अधिकांश स्कूल शामिल है।
किताबो में चल रहा कमीशन का खेल
एनसीईआरटी की पुस्तकें तो हर दुकान में मिल जाती हैं पर निजी प्रकाशकों की किताबें लेने के लिए निश्चित दुकान पर आना पड़ता है। कहीं और ये किताबें नहीं मिलतीं। एटलस, व्याकरण, कॉम्पैक्ट, ग्राफ बुक आदि ऐसी चीजें है जो पूरे साल कहीं नहीं लगतीं, फिर भी लेनी पड़ती हैं क्योंकि स्कूल कहता है। 488 रुपये की कॉम्पैक्ट असाइनमेंट, 50 रुपये की ग्राफ बुक आदि लेते-लेते बिल हजारों में चला जाता है। चाहे राजस्थान सरकार हो या केन्द्र सरकार, शिक्षा पर किसी का ध्यान नहीं है। निजी स्कूलों द्वारा जनता से खुली लूट हो रही है। कोई भी सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही। शिक्षा का स्तर क्या है और वहां किस प्रकार से लूट मची है? कोई देखने वाला नहीं है। स्कूल और निजी प्रकाशकों की दादागिरी पर प्रशासन भी चुप है और अभिभावकों के हित के लिए कुछ नहीं कर पा रहा। देश भर में प्रशासन ने निर्देश जारी किए हैं कि सभी स्कूलों में एनसीईआरटी की पुस्तकें पढ़ाई जाएंगी, पर कोई भी निजी स्कूल इसका पालन नहीं कर रहा। सब अपनी मर्जी से प्राइवेट पब्लिशर की किताबों की सूची अभिभावकों को थमा रहे हैं। अभिभावक भी बच्चों के भविष्य को लेकर ज्यादा विरोध नहीं कर पाते।
निजी स्कूलों में कमीशन के चक्कर में हर साल किताबें बदलने के साथ अलग-अलग प्रकाशकों की महंगी किताबें लगाई जाती हैं
प्राइवेट स्कूलों की मनमानी तो यह है कि यह हर वर्ष नए सिलेबस की किताबें लगा रहे है। ऐसे में अगर किसी का बच्चा दूसरी कक्षा में पढ़ता है तो पहली कक्षा वाले बच्चे के काम यह किताबें नही आएंगी। वहीं एक जुलाई से स्कूलों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। स्कूलों में दाखिला प्रक्रिया भी जोरों पर चल रही है।
शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय नहीं
वहीं स्कूलों में भी पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय नहीं है। यहां कम शैक्षिक योग्यता वाले अप्रशिक्षित युवक-युवतियों को शिक्षण कार्य में लगाया जाता है। इससे इस तरह के शिक्षकों को कम वेतन देकर अधिक मुनाफा कमा लेते हैं। इस कारण इस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।
चार से पांच हजार की किताबें और स्टेशनरी
एक स्कूल में तीसरी में पढ़ने वाले एक छात्र के अभिभावक ने बताया कि किताबें और कापियां विशेष दुकान से ही खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। पूरा एक पैकेज बनाकर बेचा जा रहा है। इसमें किताबें, कापियां और अन्य महंगे स्टेशनरी आइटम शामिल हैं। इसमें स्थानीय अज्ञात प्रकाशकों की कुछ पुस्तकें भी हैं जो बहुत महंगें दामों पर मिल रही हैं। किताबों और स्टेशनरी के लिए करीब चार से पांच हजार लिया जा रहा है।
एनसीईआरटी की किताबों को दरकिनार कर निजी स्कूल अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की किताबों की सूची थमा देते हैं। खास बात यह है कि इन किताबों के दाम में गत वर्ष के मुकाबले बीस प्रतिशत बढ़ोतरी हो गई है। अभिभावकों से हो रही इस लूट का हिस्सा कमीशन के तौर पर स्कूल प्रबंधन को भी मिलता है।
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परेशानी यह भी … गिनी-चुनी दुकानों पर ही उपलब्ध है कोर्स और यूनिफार्म
स्कूल संचालकों ने अपनी सुविधा के अनुसार बुक स्टॉल पर सेट करके रखे हैं, उन्हीं की दुकानों पर उनके स्कूलों का कोर्स उपलब्ध है। यूनिफार्म के लिए भी दुकानें निर्धारित हैं, जो अपनी मनमर्जी के हिसाब से यूनिफार्म बेच रहे हैं।
बताया तो यहां तक जाता है कि कपड़ा व्यापारी स्कूल संचालकों को शिक्षण सत्र प्रारंभ होने से पहले ही उन्हें उनका कमीशन पहुंचा देते हैं। इस तरह कोर्स और यूनिफार्म जिले भर में गिनी-चुनी दुकानों पर ही बेची जा रही है, जिसका नुकसान पालकों को उठाना पड़ रहा है। इस तरह संबंधित दुकानदार का भी एक तरह से बाजार पर एकाधिकार हो जाता है।