मरूगंगा कही जाने वाली लूणी नदी में दशकों से हो रहे औद्योगिक इकाइयों के केमिकलयुक्त दूषित जल प्रवाह से क्षेत्र के किसानों की जिंदगी और कृषि भूमि बुरी तरह प्रभावित हो रही है। पोकरण के पूर्व राजपरिवार से संबंध रखने वाले ठाकुर नागेंद्र सिंह ने क्षेत्र का दौरा कर किसानों की समस्याओं का जायजा लिया। उन्होंने इसे क्षेत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि इस समस्या का स्थायी समाधान न होना प्रशासनिक विफलता को दर्शाता है।

लूणी नदी की ऐतिहासिक महत्ता और किसानों की समस्या
रियासतकालीन समय में लूणी नदी के किनारे बसे 12 गांव पोकरण रियासत का हिस्सा हुआ करते थे। इन गांवों की उपजाऊ भूमि को लूणी नदी का पानी समृद्ध बनाता था। परंतु वर्तमान में पाली, जोधपुर और बालोतरा की औद्योगिक इकाइयों द्वारा छोड़े जा रहे केमिकलयुक्त पानी ने इस भूमि को बंजर बना दिया है।
ठाकुर नागेंद्र सिंह ने कहा, “लूणी नदी मरूस्थलीय क्षेत्र के लिए भागीरथी से कम नहीं है। लेकिन आज यह नदी किसानों के लिए अभिशाप बन चुकी है। हर साल जागरूक नागरिक और संगठन इसके लिए आवाज उठाते हैं, धरना-प्रदर्शन करते हैं, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा है।”
CETP ट्रस्ट और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की भूमिका पर सवाल
क्षेत्र के किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (PCB) और CETP ट्रस्ट पर मिलीभगत और लापरवाही के आरोप लगाए हैं।
नागेंद्र सिंह ने कहा, “CETP ट्रस्ट और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नियमों का पालन करवाने में विफल रहे हैं। ट्रस्ट को औद्योगिक इकाइयों से प्रदूषित पानी के ट्रीटमेंट के लिए धनराशि मिलती है, लेकिन यह पैसा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है। किसानों की जमीनें बंजर हो रही हैं, लेकिन प्रशासन आंख मूंदे बैठा है।”
किसानों का दर्द
हुकम सिंह अजीत, एक समाजसेवी, ने कहा कि लूणी नदी में प्रदूषण रोकने के लिए प्रशासन पूरी तरह असंवेदनशील है। उन्होंने कहा, “यदि प्रदूषित जल का ट्रीटमेंट सही ढंग से हो, तो किसान रिकॉर्ड पैदावार कर सकते हैं।”
अनिल मेघवाल ने बताया कि दूषित पानी से सिंचाई करने पर जमीन की उर्वरकता खत्म हो रही है और जीरा, इसबगोल, रायड़ा जैसी प्रमुख फसलें बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।
प्रभावित गांवों की सूची
प्रभावित गांवों में भाचरणा, धुंधाड़ा, रामपुरा, अजीत, भलरों का बाड़ा, जसोल, तिलवाड़ा, सिंधरी, सांकरणा, और गुड़ामालानी शामिल हैं। इन गांवों के किसान हर साल तहसील और उपखंड मुख्यालयों पर ज्ञापन सौंपते हैं, लेकिन उनकी समस्याएं अनसुनी रह जाती हैं।
क्या है समाधान?
ठाकुर नागेंद्र सिंह और अन्य विशेषज्ञों ने सुझाव दिया कि:
- CETP ट्रस्ट की कार्यप्रणाली की सख्त मॉनिटरिंग की जाए।
- प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की जवाबदेही तय की जाए।
- औद्योगिक इकाइयों में लगे ट्रीटमेंट प्लांट्स का समय-समय पर निरीक्षण हो।
- दूषित जल प्रवाह रोकने के लिए प्रशासन कड़े कदम उठाए।
अजीत व् खरंटिया में अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा के पूर्व अध्यक्ष पोकरण ठाकुर नागेंद्र सिंह ने क्षेत्र के किसानों के साथ केमिकल युक्त दूषित जलप्रवाह से प्रभावित लूणी नदी का जायजा लिया उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि मरूगंगा लूणी नदी में पुनः धारा प्रवाह दूषित जलप्रवाह को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए क्षेत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण बताया, ज्ञात रहे रियासतकालीन समय में लूणी नदी के तटवर्तीय 12 गाँव पोकरण रियासत में आते थे अजीत मजल कोटड़ी में स्थित कृषि भूमि से होने वाली बम्पर पैदावार दूषित पानी से प्रभावित हैं, पोकरण पूर्व राजपरिवार से लूणी नदी के तटवर्तीय क्षेत्र के किसानों का अनूठा लगाव हैं।
पोकरण ठाकुर नागेंद्र सिंह ने कहा की मारवाड़ के समृद्धि एवं खुशहाली की प्रतीक मरू गंगा लूनी नदी जो की तटवर्ती क्षेत्र के किसानों के लिए किसी भागीरथी से कम नहीं हैं लेकिन विगत अरसे से पाली जोधपुर तथा बालोतरा की औद्योगिक इकाइयों से धारा प्रवाह केमिकल युक्त दूषित पानी के नदी में निस्तारण से अन्नदाता के माथे पर खिची चिंता की लकीरें उनकी दयनीय स्थिति को बयां कर देते हैं, जो की चिंतनीय हैं जबकि प्रत्येक वर्ष पक्ष विपक्ष के जनप्रतिनिधियों तथा राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनों के जागरूक गणमान्य नागरिकगणों द्वारा लूणी नदी के तटवर्ती क्षेत्र का दौरा कर त्वरित निराकरण के लिए धरने प्रदर्शन कर शासन प्रशासन को ज्ञापन के बावजूद अन्नदाता को नजरअंदाज कर कोई राहत नहीं देना वाकई गंभीर मसला हैं
उन्होंने कहा की औद्योगिक इकाइयों से निस्तारित केमिकल युक्त दूषित पानी का निस्तारण कायदे से ट्रीटमेंट प्लांट में होना चाहिए जबकि वास्तविकता अलग हैं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और CETP ( वॉटर पॉल्युशन कंट्रोल एंड रिसर्च ट्रस्ट) के बीच सांठगांठ और लालफीताशाही व्यवस्था का खामियाजा किसान मूकदर्शक बनकर भुगतते हैं क्योंकि बालोतरा, बिठूजा, जसोल, पाली तथा जोधपुर में गठित वॉटर पॉल्युशन कंट्रोल एंड रिसर्च ट्रस्ट (सीईटीपी) से औद्योगिक क्षेत्र की हजारों इकाइयां जुड़ी हुई है। इन इकाइयों में कपड़ा तैयार करने के दौरान निकलने वाली प्रदूषित पानी नियमों में तो वहाँ लगे प्लांट में पानी को उपचारित किया जाता है। रिट्रीट पानी को 85 फीसदी तक वापस काम में लिया जाता है, यह पानी ट्रस्ट कम दर में वापस उद्यमियों को उपलब्ध करवाता है जबकि ट्रस्ट इन तथ्यों के क्रियान्वयन से कोसों दूर हैं। क्योंकि ट्रस्ट राजनितिक में हस्तक्षेप एवं धनबल की सांठगांठ से करोड़ों रूपये का गबन कर बंदरबाँट करते हैं जिसे बखूबी समझा जा सकता है
प्रदूषित पानी को उपचारित करने में आने वाले खर्च की एवज में फैक्ट्री संचालक ट्रस्ट को कपड़े की प्रति गांठ पर सेसकर चुकाता है। सीईटीपी ट्रस्ट सभी फैक्ट्रियों की मॉनिटरिंग, रखरखाव व प्रदूषण नियंत्रण का कार्य करती है। इसकी कार्यकारिणी का कार्यकाल 3 साल तक होता है। ऐसे में पूरे इंडस्ट्रीज पर वर्चस्व को लेकर ट्रस्ट के आम चुनाव के दौरान उद्यमियों में होड़ देखने को मिलती हैं स्वभाविक भी है क्योंकि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मार्फत सत्ता के गलियारों तक ट्रस्ट के दबदबे का दंश आखिरकार मरूगंगा के तटवर्ती किसान भुगतते हैं ।
समाजसेवी हुकम सिंह अजीत ने कहा कि शासन प्रशासन में बैठे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी अपनी जवाबदेही और जिम्मेदारी के प्रति इतने उदासीन हैं की इन्हे फैक्ट्रियों से निस्तारित केमिकल युक्त दूषित पानी का लूणी नदी में अरसे से बेरोकटोक धड्ड्ले से हो रहा प्रवाह नजर नहीं आता, जबकि अपने दायित्व का ईमानदारी पूर्वक निर्वहन करले तो यकीनन मरू गंगा लूनी नदी के तटवर्ती क्षेत्र में किसान जीरे की रिकॉर्ड पैदावार लेकर अनूठी मिसाल पेश कर सकते हैं।
अनिल मेघवाल ने बयाया कि भ्रष्ट तंत्र की भेंट चढ़ी किसानों की बेशकीमती जमीनें दूषित पानी के जल रिसाव और सिंचाई से बंजर हो रही जिसके कारण जीरा इसबगोल रायड़ा की पैदावार और गुणवत्ता के मानक घट रहे हैं वहीं पशुधन असमय काल कलवित हो रहे हैं


वसीद खान मेहर ने कहा कि हालात यह बन चुके है की सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी की उपलब्धता के उपरांत भी फैक्ट्रियों से छोड़ा गया केमिकल युक्त दूषित पानी के प्रभाव से जीरा इसबगोल रायडा गेहूं की पैदावार ना के बराबर है जो की किसानों की आजीविका को लेकर चिंता का विषय हैं, हर वर्ष की भांति भाचरणा, धुंधाड़ा, रामपुरा, गोदों का बाड़ा, महेश नगर ढीढस, खरंटिया, कोटड़ी, मजल, पातों का बाड़ा, अजीत, भलरों का बाड़ा, चारणों का बाड़ा, भानावास, रानी देशीपुरा समदड़ी करमावास बिठूजा सांकरणा जसोल तिलवाड़ा सिणधरी गुड़ामालानी गांधव सहित दर्जनों तटवर्ती गांवों के किसान एकजुट होकर तहसील और उपखंड मुख्यालय पर फैक्ट्रियों से निस्तारित दूषित जल प्रवाह को लेकर प्रशासन को ज्ञापन सौंपते हैं, लेकिन हालात तो जस के तस बने हुए हैं।